Wednesday, April 8, 2020

पारकर फिलमोर की कहानी : कौन थी परी?

विश्व बाल साहित्य में आज पढ़िए 
पारकर फिलमोर की कहानी : कौन थी परी?
हिंदी रूपांतर :देवेन्द्र कुमार + रमेश तैलंग 

(पारकर फिलमोर विश्व  के प्रसिद्ध  परी-कथा लेखकों में से एक थे. उन्होंने अनेक परीकथाओं का  संकलन/संपादन/पुनर्लेखन किया.उनकी कुछ महत्वपूर्ण कृतियों के नाम हैं : चेक्स्लोवाक फेयरी टेल्स, द हिकरी लिंब,द लाफिंग प्रिंस, माइटी मिक्को, द ढूमेकर्स एप्रन (चेक लोककथाओं की  दूसरी पुस्तक).

कौन थी परी?

जेन अपनी मां के साथ एक टूटी-फूटी झोपडी में रहती थी. पिता बहुत पहले नौकरी कि तलाश में परदेस गए थे. शुरू-शुरू में उनका समाचार आता रहा कि वह जल्दी हे घर लौट आएँगे, पर ऐसा कभी न हुआ. धीरे-धीरे कई वर्ष बीत गए. अब झोंपडी में जेन कि मां और वह, बस दो ही जने रह गए थे.

परिवार पहले ही गरीब था, अब स्थिति और भी बिगड़ गई. जेन कि मां गांव के कई घरों में मेहनत करती थी, तब कहीं जाकर मां-बेटी को रूखा-सूखा भोजन मिल पाता था.
एक बार जेन कि मां ठण्ड के मौसम में बीमार हो गई. इस कारण वह कई दिन तक काम पर नहीं जा सकि. काम पर नहीं गई तो भोजन कैसे मिलता. जेन बड़ी हो रही थी, पर वह इतनी भी बड़ी नहीं हुई थी कि अपनी मां कि जगह जाकर गांववालों के घरों में काम-काज कर सकती. धीरे-धीरे जेन कि मां कि तबीयत तो ठीक हो गई, पर वह इतनी कमजोर हो गई थी कि अब मेहनत-मजूरी नहीं कर सकती थी.
गांव का वैद्य उसका इलाज करता था. इलाज के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए दवाएं और अच्छा पौष्टिक भोजन न मिलने से स्वास्थ्य सुधर नहीं रहा था. अब वह चलने-फिरने से भी लाचार हो गई थी. आखिर गांव के कुछ लोग मिलकर उसका हालचाल पूछने आए. तय हुआ कि जेन जमींदार की भेड़-बकरियों को लेकर चरागाह में जाया करेगी. इसके बदले में जमीदार ने मां बेटी के लिए भोजन की व्यवस्था कर दी. जीवन जैसे-तैसे चलने लगा. जेन छोटी होकर भी जैसे बड़ी हो गई थी.
शुरू-शुरू में मां उसे अकेली चरागाह में भेजने से डरती थी, पर दूसरा उपाय भी क्या था. वह जैसे-तैसे भेड़-बकरियों को चरागाह लाने-ले जाने लगी. घर से चलते समय मां जेन को दो सूखी रोटियां दे देती. जेन चरागाह में चली जाती और सारा दिन वहीं रहती. धीरे-धीरे उसका डर जाता रहा. चरागाह का वातावरण बहुत अच्छा था. हर तरफ ऊंचे-ऊंचे पेड़ तथा तरह-तरह के फूल थे. भेड़-बकरियां आराम से चरती रहतीं. जेन इधर-उधर घूमती. एक दिन वह पेड़ के नीचे बैठी थी, तभी दूर झाड़ियों के पीछे गाने की आवाज आई. जेन को उत्सुकता हुई कि जाकर देखे कि झाड़ियों के पीछे कौन गा रहा है. गांव तो वहां से दूर था. इससे पहले उसने चरागाह में किसी को गाते हुए नहीं सुना था. तब इसका क्या रहस्य था.
जेन ने एक एक बार भेड़-बकरियों पर नजर डाली. वे आराम से चर रही थीं. उनकी तरफ से निश्चिन्त होकर जेन उन झाड़ियों की तरफ चल दी जहां से गाने की आवाज सुनाई दे रही थी. वह धीरे-धीरे झाड़ियों के पास जा पहुँची, और जो देखा तो देखती रह गई. झाड़ियों के पीछे एक छोटा-सा मैदान था. वहीं एक सुंदर लडकी मस्त होकर नाच रही थी. उसके सुनहरी केश हवा में लहरा रहे थे . उसके वस्त्र हवा में फहरते हुए धूप में चमचमा रहे थे. ऐसे सुंदर वस्त्र तो जेन ने इससे पहले कभी नहीं देखे थे . और उस लडकी का तो कहना ही क्या. मां जेन को सुंदर कहती थी. और सच में जेन-सी सुंदर लडकी पूरे गांव में कोई दूसरी नहीं थी, पर जेन को लगा चरागाह में नाचती लडकी उससे भी कहीं ज्यादा सुंदर थी. पर वह थी कौन और कहां से आई थी.
जेन के इन प्रश्नों का उत्तर कौन देता. वह लडकी बहुत अच्छा नाच रही थी. साथ ही मीठे स्वरों में कुछ गा भी रही थी. गाना जेन को सुनाई तो दे रहा था पर उसका अर्थ समझ में नहीं आ रहा था. जेन तन्मय हो कर उस अनजान लडकी का नृत्य देखती रही. उसे पता ही न चला कि कितना समय बीत गया. तभी उस लडकी ने नाचना बंद कर दिया. सब तरफ सन्नाटा छ गया. अब जेन का ध्यान आकाश की और गया –“अरे, उसे पता ही न चला कि कब दिन ढल गया था. अब तो वह बहुत घबरा गयी, फिर जल्दी-जल्दी –भेड़-बकरियों को इकठ्ठा किया और गांव की तरफ चल दी.
सोच रही थी कि आज पता नहीं मां क्या कहेगी. कितना फटकारेगी. देखा, मां घर के दरवाजे पर खडी उसकी राह देख रही थी. जेन को आते देख मां ने भागकर उसे अपनी बाहों में भर लिया. सर को थपथपा कर बोली –“आज देर कैसे हो गई?” जेन ने सोचा कि मां को सच बात बताएं या न बताए. पर फिर बता ही दिया.
सुनकर मां के चेहरे पर चिंता कि रेखाएं उभर आईं. उसने कहा-“बेटी, जंगलों में न जाने कौन रहता है. कहते हैं, वहां परियां, बौने, राक्षस रहते हैं. अब मैं तुझे नहीं जाने दूंगी.”
दिन निकला. जेन भेड़-बकरियों को चरागाह में ले जाने के लिए तैयार होने लगी. तभी मां ने कहा-“जेन, आज चरागाह में मत जाना.”
“क्यों?”
“मैंने कहा था न जंगलों में परियां, बौने होते हैं. दिन में वे छिपकर रहते हैं, पर कभी-कभी किसी को दिखाई भी पड़ जाए. पर फिर उस अनजान लडकी का चेहरा आंखों के सामने तैर गया. वह उम्र में जेन से थोड़ी बड़ी हैं. वे बहला फुसला कर किसी को भी अपने साथ ले जाते हैं और फिर उसका कुछ पता नहीं चलता. मैंने सुना है हमारे गांव के कई लोग इसी तरह गायब हो गए. मुझे तो लगता है तेरे पिताजी को भी परियां-बौने अपने साथ ले गए हैं. तभी उनकी कोई खबर हमें नहीं मिली.” कहकर जेन कि मां आंसू पोंछने लगी.
मां की बात सुनकर जेन को भी डर लगने लगा. पर फिर उस अनजान लडकी का चेहरा आंखों के सामने तैर गया. वह उम्र में जेन से थोड़ी बड़ी होगी. उसने कहा-“मां, अगर हम ऐसे डरकर रहेंगे तो कैसे चलेगा. तुम्हीं तो मुझे समझाया करती हो कि हमें किसी से डरना नहीं चाहिए.” फिर उसने हाथ में छडी उठा ली जिससे वह भेड़-बकरियों को हांका करती थी. बोली-“तुमने एक बार परी की कहानी सुनाई थी जिसके पास जादू कि छड़ी होती है. तो मेरे पास भी यह छड़ी है. अगर उसने मेरे साथ कोई गडबड कि तो मैं इसी चडी से उसे पीटूंगी. तुम जरा भी मत घबराओ.”
जेन की भोली बातें सुनकर मां के चिंतित चेहरे पर हंसी झलकने लगी. बोली-“काश मैं भी तेरे साथ चल सकती.”
जेन ने कहा- “मां, तुम जरा भी चिंता मत करो. अगर वह अच्छी परी है तो जरूर हमारे लिए कुछ अच्छा होगा. मैं उससे कहूंगी कि पिताजी को खोजकर ले आए.”
जेन की मां का चेहरा फिर उदास हो गया. बोली –“कौन जाने तेरे पिता कहां हैं. मां को समझाबुझाकर जेन भेड़-बकरियों को लेकर चरागाह की तरफ चल दी. वह सारा दिन उस लडकी की प्रतीक्षा करती रही, पर वह न आई. जेन बार-बार झाड़ियो के पीछे वाले मैदान की ऑर देखती पर वहां कोई न आया. आखिर दिन ढलने लगा तो जेन ने भेड़-बकरियों को इकठ्ठा किया और गांव की तरफ चल दी. वह सोच रही थी- “वह लडकी आज क्यों नहीं आई? क्या सचमुच वह कोई परी है. और उसे अपने जादू से पता चल गया कि हम उसके बारे में क्या सोचते हैं.”
उस रात भी जेन को नींद नहीं आई. वह लगातार उसी लडकी के बारे में सोचती रही जिसे मां परी कह रही थी. अगले दिन जेन फिर चरागाह में जा पहुँची. मौसम अच्छा था, धीमी हवा में फूल अपने सर हिला रहे थे. हवा में सुगंध फ़ैली थी, पर जेन उदास थी.
तभी वह चौंक पडी. हां, उसके कानों में गाने की आवाज आई थी. वह भागकर झाड़ियों के पास जा पहुंची. देखा, वही लडकी मस्ती से नाच रही थी –हवा में एक मीठी धुन तैर रही थी. जेन ज्यादा देर तक छिपी न रह सकी . धीरे-धीरे उसके तरफ बढ़ने लगी.
जेन को अपनी तरफ आती देख उस लडकी ने नाचना बंद कर दिया और ध्यान से जेन की तरफ देखने लगी. फिर मुस्करा कर बोली –“कौन हो तुम?”
“मेरा नाम जेन है, तुम कौन हो?”
“मेरा नाम परी है.” उस लडकी ने कहा. बोली –“आओ मेरे साथ नृत्य करो.” और उसने फिर से नाचना शुरू कर दिया. “परी” शब्द सुनकर जेन चौंक पडी. फिर उसके पैर जैसे आप से आप थिरकने लगे . उसने भी नाचना शुरू कर दिया.
परी नाम वाली लडकी ने अपना नृत्य रोक दिया और जेन को नाचते हुए देखने लगी. कुछ देर बाद उसने कहा-“तुम तो बहुत अच्छा नाचती हो.” इस पर जेन ने भी नृत्य रोक दिया और परी से बोली “क्या तुम सचमुच परी हो?”
परी हंस पडी. उसने कहा –“मेरे पिताजी मुझे इसी नाम से पुकारते हैं.”
“क्या परियों के माता-पिता भी होते हैं?”-जेन ने पूछा.
“हां, होते हैं.” परी ने कहा.
“तुम कल क्यों नहीं आई?”, जेन ने पूछा.
“क्योंकि कल मेरे पिताजी यहां नहीं आए थे आज वह जडी-बूटियाँ लेने आए हैं तो मैं भी चली आई. मैं उन्ही के साथ आती हूँ.”, परी ने कहा.
तभी दूर से एक दाढीवाला कंधे पर झोला लटकाए आता दिखाई दिया. जेन उसकी तरफ देखती हुई सोच रही थी. “क्या परियों के पिता हम जैसे होते हैं. यह तो हमारे गांववालों जैसा है.
दाढी वाला पास आया तो परी ने उसे जेन के बारे में बताया. कहा –“यह लडकी यहाँ भेड़-बकरियां चराती है.”
दाढी वाला कुछ पल जेन को घूरता रहा, फिर बोला –“घर में पिता भाई कोई नहीं, और तुम्हारी मां बीमार है.”
उसकी बातों ने जेन को चौंका दिया. सोचने लगी-“आखिर इसे कैसे पता कि मेरी मां बीमार है और घर में पिता तथा भाई कोई नहीं है. क्या यह जादू जानता है.”
तभी दाढी वाले ने कहा –“जेन, आज तो देर हो गई है. कल मैं तुम्हारी मां को देखने चलूँगा. मैं एक वैद्य हूं, शायद उनका इलाज कर सकूं.
इसके बाद परी और उसका पिता चले गए. जेन भी भेड़-बकरियों को लेकर गांव चली गई. घर पर मां उत्सुकता से उसकी प्रतीक्षा कर रही थी. उसने पूछा – “ परी मिली थी?”
“हां, मा, आज तो परी का पिता भी साथ था, मुझे लगता है, वह् जादू जानता है. उसने मुझे देखते ही जो कुछ कहा उससे तो ऐसे ही लगता है.” फिर उसने मां को पूरी बात बता दी. मां ने कहा _”जेन, मैं तो पहले ही कह रही थी कि वह लडकी जरूर एक परी है. उसके पिता ने तुझसे बिना पूछे ही हमारे बारे में सब कुछ बता दिया. उससे तो यही प्रमाणित होता है.”
उसी पूरी रात जेन और उसकि मां आपस में “परी” के बारे में बातें करते रहे. अगले दिन जेन समय से पहले ही चरागाह जाने के लिए तैयार हो गई. मां ने कहा –“जेन, अभी तो सूरज भी पूरी तरह नहीं उगा है. ऐसी हड़बड़ी क्यों?”
जेन ने कहा –“मां, परी के पिता ने कहा था न आज वह हमारे घर आएगा. देखो क्या होता है.” मां के रोकते-रोकते भी जेन काफी पहले चरागाह पहुँच गई. कुछ देर बाद उसने देखा परी और दाढी वाला चले आ रहे हैं.
दाढी वाले ने कहा –“जेन, मैं पहले कुछ जडी-बूटिया इकठ्ठी करूंगा, फिर मैं और परी तुम्हारे घर चलेंगे.” उसके जाने के बाद परी और जेन साथ-साथ नाचती रही. कुछ समय बाद परी का पिता अपने झोले में जडी-बूटियाँ लेकर आ गया. जेन ने भेड़-बकरियों को इकठ्ठा किया और तीनों गांव की और चल दी. जेन के मन में तरह-तरह के विचार आ जा रहे थे
जेन की मां दरवाजे पर खडी प्रतीक्षा कर रही थी. उन्होंने बड़े आदरपूर्वक परी और उसके पिता का स्वागत किया, फिर उदास स्वर में बोली –“घर में आप लोगों के स्वागत के लिए कुछ है नहीं. क्योंकि इसके पिता न जाने कहां चले गए और इसका कोई भाई भी नहीं है.”
परी के पिता ने कहा- “ यह बात तो मैं जेन को चरागाह में देखकर ही समझ गया था. अगर घर में इसके पिता या भाई होते तो इस छोटी ही लडकी को चरागाह में भेड़-बकरियां चराने के लिए क्यों आना पड़ता. अगर आप स्वस्थ होतीं तो जेन को अकेली चरागाह में कभी नहीं भेजतीं. इसी से मैंने जेन से आपके बीमार होने के बारे में कहा था.
इसके बाद परी के पिता ने जेन की मां कि खूब अच्छी तरह जांच की, फिर उन्हें कुछ दवाइयां दिलाईं, फिर कहा –“अब मैं एक हफ्ते बाद आपको देखने आऊँगा. मैं देखना चाहता हूँ कि मेरी दवाइयां आप पर कितना असर करती हैं.”
तभी जेन पूछ बैठी –“आपने अपनी बेटी का नाम परी रखा है. क्या आप सचमुच परीलोक से आए हैं?”
सुनकर परी और उसका पिता हंस पड़े. उन्होंने कहा –“यही समझ लो. मैं एक हफ्ते बाद फिर आऊंगा.”
“परी को भी साथ में जरूर लाना.” जेन ने कहा.
इसके बाद परी और उसका पिता चले गए. परी के पिता ने जेन की मां को जो दवाईयां खिलाई थीं उनका अच्छा प्रभाव हुआ. उनका स्वास्थय सुधरने लगा. एक सप्ताह बाद परी और उसके पिता फिर आए. उन्होंने जेन की मां को नई दवाएं खिलाई और कहा-“आप जल्दी ही एकदम स्वस्थ हो जाएंगी.” वे लोग अपने साथ एक बड़ी टोकरी में फल तथा भोजन की दूसरी सामग्री लाए थे.
यह देखकर जेन की मां ने कहा –“आप इतनी सारी चीजें ले आए हैं, पर मैं तो बदले में कुछ नहीं दे सकती.”
यह सुनकर परी उनसे लिपट गई. उसने कहा –“मैं आपको मौसी कहूंगी.” फिर परी और जेन मिलकर नाचने लगीं. देखकर जेन की मां की आँखों में आंसू आ गए. उन्होंने कहा-“आज मैं बहुत खुश हूँ.”
कुछ देर बाद परी और उसके पिता फिर आने की बात कहकर चले गए.जेन और उसकी मां दरवाजे पर खड़े उन्हें जाते हुए देखते रहे. उसके बाद परी और उसके पिता कभी नहीं आए. हां, हर हफ्ते उन्हें घर के दरवाजे पर फलों के टोकरा और दवाओं की थैली रखी मिलती थी. साथ में एक पत्र होता था-

“मेरी प्यारी मौसी,
आशा है अब आपका स्वास्थ्य पहले से ठीक होगा. हम जल्दी ही आपसे मिलने आएंगे. मैं और जेन मिलकर चरागाह में नृत्य करेंगे. तब तक आप भी इतनी स्वस्थ हो जाएंगी कि चरागाह में आकर हम दोनों को नाचते हुए देख सकें.
आपकी ,
परी!”
इसी तरह समय बीतता रहा, परी और उस उसके पिता कभी नहीं आए. जेन चरागाह में जाकर परी की प्रतीक्षा करती थी, पर परी से मिलने कि उसके इच्छा पूरी न हुई. जेन की मां का स्वास्थ्य एकदम ठीक हो गया. अब उन्हें गांव के घरों में मेहनत की जरूरत नहीं थी. अपनी झोंपडी के पिछवाड़े उन्होंने साग-सब्जियां उगानी शुरू कर दीं. उसी से घर का काम चल जाता था. अब जेन भेड़-बकरियां चराने चरागाह नहीं जाती थीं. पर कभी-कभी परी से मिलने की आशा लेकर वहां जाती जरूर थी. जेन और उसकी मां को एक प्रश्न का उत्तर कभी नहीं मिला –“क्या परी और उसका पिता सचमुच परी लोक से आए थे? कौन जाने? #

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