बालसाहित्य
संसार - अप्रैल, २०१३
WORLD OF CHILDREN’S LITERATURE
April, 2013
बच्चों की दो बेहतरीन वेबसाईटें
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नाटककार/कथाकार
श्रीकृष्ण की बालकहानी
“बोलने
वाली रजाई”
“अंदर चले आएं, श्रीमान, अंदर चले आएं. मैं आपका ह्रदय से स्वागत करता
हूं.” जैसे ही व्यापारी ने
सराय के दरवाजे पर पांव रखा, सराय का मालिक खुशी में भर चिल्लाया.
यह सराय उसी दिन खोली गई थी और
उस समय तक कोई भी व्यक्ति उस सराय में नहीं आया था. वास्तव में वह सराय प्रथम श्रेणी की सराय न थी. सराय का मालिक बहुत ही निर्धन
मनुष्य था. उसका
अधिकांश सामान, जैसे चटाइयां, मेजें, बर्तन इत्यादि एक कबाड़ी की दूकान से खरीदा
गया था. व्यापारी को सराय पसंद
आयी. अपना मन-पसंद भोजन करने
के बाद वह बिस्तर पर जा लेटा, अभी वह कुछ ही देर सो पाया होगा कि उसे कमरे में दो
आवाजें सुनाई दीं जिससे उसकी नींद उचट गई. ये आवाजें दो छोटे-छोटे लड़कों की मालूम होती थीं.
“प्यारे बड़े भाई, क्या आपको ठण्ड
लग रही है? पहली आवाज थीं.
“क्या तुम्हें भी ठण्ड लग रही है?
दूसरी आवाज सुनाई पड़ी.
व्यापारी ने सोचा कि शायद भूल से
सराय के मालिक के बच्चे कमरे में आगये हैं. ऐसा होने की संभावना भी अधिक थी, क्योंकि जापानी सरायों के
कमरों में दरवाजे नहीं होते जिन्हें बंद किया जा सके. केवल कागज़ के पर्दे होते हैं
जिन्हें इधर-उधर खिसका कर आने-जाने का रास्ता बनाया जा सकता है.”
“श....श...व्यापारी ने कहा, “बच्चों, यह तुम्हारा कमरा नहीं है.”
कुछ देर कमरे में शान्ति रही, पर
फिर से वही आवाजें सुनाई दीं.
“प्यारे बड़े भाई, क्या आपको ठण्ड
लग रही है?”
और उत्तर में आवाज आई , “क्या तुम्हें भी ठण्ड लग रही है?
व्यापारी बिस्तर से झुंझलाकर उठ
बैठा. उसने मोमबत्ती जलाई
और कमरे का ध्यानपूर्वक निरीक्षण किया. किन्तु कहीं कोई चुहिया का बच्चा भी तो नहीं मिला. उसने मोमबत्ती को जलता रहने दिया
और चुपचाप बिस्तर पर जा लेटा.
कुछ क्षण बाद फिर दो आवाजें आईं,
“प्यारे बड़े भाई, क्या
आपको ठण्ड लग रही है” और
उत्तर में, “क्या
तुम्हें भी ठण्ड लग रही है?” सुनाई पड़ीं.
आवाजें एक रजाई में से आ रही थीं. व्यापारी ने ध्यानपूर्वक दोनों
आवाजों को सुना. जब
उसे विश्वास हो गया कि आवाजें रजाई में से ही आ रही हैं तो उसने जल्दी-जल्दी अपना
सामान बटोरा और एक गठरी बनाई. गठरी को लेकर वह सीधी से नीचे उतरा और सराय के मालिक से
सारा हाल कह सुनाया.
“जनाब”, गुस्से में भरकर सराय का मालिक
चीखा, “लगता है कि, आपने खाने
के समय बहुत तेज शराब पी ली है इसलिए आपको बुरे स्वप्न दिखाई दिए. कहीं रजाइयां भी बोलती हैं?
व्यापारी ने उत्तर दिया, “आपकी रजाइयों में से एक रजाई
बोलती है. आप मुझसे असभ्यता पूर्वक
बोले, इसलिए अब मैं इस सराय में एक घड़ी भी नहीं ठहरूंगा.” यह कह व्यापारी ने अपनी
जेब से कुछ नोट निकाले और उन्हें सराय के मालिक की ओर फेंककर कहा, “यह रहा आपका किराया. मैं जा रहा हूं.” और वह चला गया.
अगले दिन कोई दूसरा व्यक्ति सराय
में आया. उसने खाने के समय शराब
भी नहीं पी, लेकिन वह सोने के कमरे में थोड़ी ही देर रहा होगा कि उसे भी वही आवाजें
सुनाई दीं. वह
भी सीढ़ी से नीचे आया और उसने भी सराय के मालिक से कहा कि एक रजाई में से दो आवाजें
आती हैं.
“महोदय’, सराय का मालिक चिल्लाया, “मैंने आपको अधिक से अधिक आराम पहुंचाने
की कोशिश की, इसका बदला आप मुझे ऐसी
बेवकूफी से भरी कहानी सुनाकर चुकाना चाहते हैं. आप मुझे परेशान करना चाहते हैं.
उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, "जी नहीं, यह बेवकूफी से भरी कहानी नहीं है. मैं आपसे कसम खाकर कहता हूं कि मैंने एक रजाई से दो लड़कों
की आवाजें आती सुनी हैं. मैं इस सराय में हरगिज नहीं रहूंगा.
जब दूसरा ग्राहक भी नाराज होकर
चला गया तो सराय के मालिक का माथा ठनका. वह ऊपर गया और
उसने एक के बाद दूसरी रजाई उलटना-पलटना शुरू कर दिया. उसे भी एक रजाई में से दो
आवाजें आती सुनाई दीं.-
“प्यारे बड़े भाई, क्या आपको ठण्ड
लग रही है?”
“क्या तुम्हें भी ठण्ड लग रही है?
सराय का मालिक उस रजाई को अपने
कमरे में ले गया और रात भर उसे ओढकर सोया. रात भर दोनों लड़के एक से यही प्रश्न करते रहे अगले दिन
सराय का मालिक उस रजाई को लेकर उस कबाड़ी की दूकान पर गया जहां से उसने उसे खरीदा था. उसने कबाडी से पूछा, “क्या तुम्हें याद है कि यह रजाई
तुमने मुझे बेचीं थी?”
“क्यों, क्या बात है?”
“तुमने यह रजाई कहां से खरीदी थी?
इसके उत्तर में कबाडी ने पास की
एक दूकान की ओर संकेत किया और बताया कि वह रजाई उस दूकान से खरीदी गयी थी. सराय का मालिक उस पास वाली
दूकान पर गया, किन्तु उसे पता चला कि उसके मालिक ने भी उसे किसी अन्य दूकान से
खरीदी थी. इस तरह वह कई दुकानों की
धूल फांकता अंत में एक छोटे से मकान के मालिक के पास पहुंचा. उस मकान के मालिक ने यह रजाई
अपने एक किरायेदार से वसूल करके बेची थी.
इस किरायेदार के परिवार में केवल
चार सदस्य थे –एक
गरीब मां-बाप और उनके दो छोटे-छोटे बच्चे. पिता की आय बहुत कम थी. एक बार जाड़े के मौसम में ठण्ड खाकर पिता बीमार पड़ गया. एक सप्ताह तक भयंकर पीड़ा सहने
के बाद वह चल बसा और उसके शरीर को दफना दिया गया. बच्चों की मां इस आघात को सहन न कर सकी और उसकी भी मृत्यु
हो गयी.
अब दोनों भाई घर में बिलकुल
अकेले रह गए थे. बड़े
की उमर आठ साल थी और छोटे की छः साल. दोनों भाइयों का कोई मित्र न था जो उनकी इस विपत्ति में
सहायता करता.
उन्होंने भोजन-सामग्री जुटाने के लिए एक के बाद एक वस्तु को बेचना आरम्भ कर दिया. अंत में उनके पास केवल एक रजाई
रह गई.
बर्फ़ बहुत तेज गिरने लगी थी. दोनों भाई एक-दूसरे से सटकर
रजाई ओढ़ कर लेट गए. छोटे
भाई ने बड़े से पूछा-
“प्यारे बड़े भाई, क्या आपको ठण्ड
लग रही है?”
बड़े ने उत्तर दिया, “क्यों, तुम्हें भी ठण्ड लग रही
है?”
ये आवाजें रजाई में भरी रुई में
होकर गुजरीं और जादू से उसमें गूंजने लगीं. तभी मकान-मालिक अपने मकान का किराया लेने आ पहुंचा. कुछ देर तो वह त्योरी चढाए मकान में टहलता रहा, फिर लड़कों को जगाकर कहा, “मकान का किराया लाओ.”
बड़े लड़के ने उत्तर दिया, “महोदय, हमारे पास इस रजाई के
अतिरिक्त कुछ भी नहीं है.”
मकान-मालिक गुस्से में चिल्लाया,
“मैं कुछ नहीं जानता. या तो मकान खाली कर दो या मकान
का किराया लाओ. अभी
मैं इस रजाई को किराए के रूप में रखे लेता हूं.”
दोनों भाई यह सुनकर थर-थर कांपने
लगे. बड़े लड़के ने कहा, “महोदय बाहर बर्फ़ की मोटी तह जमी
हुई है. हम कहां जाएंगे?
माकन-मालिक जोर से चिल्लाया, “बकवास मत करो और यहां से
रफूचक्कर हो जाओ.”
अंत में उन्हें बाहर निकलना ही
पड़ा. उनमें से हरेक केवल एक
पतली कमीज पहने था. शेष
कपड़े रोटी खरीदने में बिक चुके थे. वे उस मकान के पिछवाड़े जाकर, एक-दूसरे से सटकर बर्फ़ से
पटी सड़क पर लेट गए. उनके
ऊपर बर्फ़ की तह पर तह जमती चली गई. अब उनके चेतना-शून्य शरीरों को ठण्ड नहीं लग रही थी. अब वे सदा के लिए सो गए थे.
सुबह को एक राहगीर उधर से गुजरा. वह इन दोनों के मृत शरीर को दया
की देवी के मंदिर में ले गया.
जापानी मंदिरों में इस पवित्र
देवी को जिसका सुंदर और दयावान मुख है और एक हजार हाथ भी हैं देखा जा सकता है. ऐसा कहा जाता है कि इस देवी के
लिए स्वर्ग के दरवाजे खुले पड़े रहते हैं जहां इसको हर प्रकार का आराम और शांति मिलेगी. लेकिन फिर भी वह वहां इसलिए
नहीं जाती क्योंकि उसे उन लाखों गरीब आत्माओं की, जो संसार में दुःख, बीमारी और
अनेक विपत्तियां सहन कर रही हैं, चिंता है. उसका कहना है कि वह उनके साथ रहना पसंद करती है और उनकी
अपने एक हजार हाथों से सहायता करेगी.
दोनों भाइयों को दया की देवी के
मंदिर के एक कोने में दफना दिया गया. एक दिन उस सराय का मालिक उस मंदिर में आया और उसने मंदिर
के पुजारी को तथा अन्य उपस्थित व्यक्तियों को उन आवाजों की दर्दभरी कहानी सुनाई. कहानी सुनाने के बाद उसने उस
रजाई को पुजारी को दे दिया. उस दर्द-भरी कहानी को सुनकर पुजारी तथा अन्य व्यक्तियों के
दृदय करुणा और पश्चाताप से भर गए. उन सब ने उन दोनों बच्चों की अकाल मृत्यु पर बड़ा दुःख
प्रकट किया. रजाई
में से अब आवाजें भी आनी बंद हो गईं, क्योंकि उसने अपना सन्देश सब को पहुंचा दिया. पुजारी तथा अन्य व्यक्तियों को
यह जानकर अत्यधिक ग्लानि हुई कि उनके नगर के दो छोटे-छोटे बच्चे भूख और ठण्ड से
मर गए थे.
आज भी बहुत-सी गरीब आत्माएं एक-दूसरे से पूछती हैं-
“प्यारे भाई, क्या आपको ठण्ड लग
रही है?”
“क्या तुम्हें भी ठण्ड लग रही है?
आज भी न जाने कितने गरीब व्यक्ति
अँधेरी और संकरी गलियों में रहते हैं जो दिन-भर अपना खून-पसीना एक करते हैं और
उन्हें पेट-भर रोटी नहीं मिलती. टन ढकने को कपडा नहीं मिलता, जिनके बच्चे एक=एक बूंद दूध
के लिए तरसते रहते हैं, जो ठीक इलाज न होने के कारण कम उम्र में ही मार जाते हैं,
और जो एक पतली-सी कमीज में ही सारे जाड़े काट देते हैं. यदि उनके बिस्तरों की पतली
चादरें, फटे हुए कपड़े बोल सकते तो आज भी भुत-सी आवाजें शहरों और गांव में गूंजती
मिलती.##
(स्रोत: विद्यामंदिर
लिमिटेड, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित श्रीकृष्ण का बाल कथा संग्रह-बोलने वाली रजाई)
मनोज साहू “निडर” द्वारा
संकलित
एक प्यारा-सा खेल
गीत – “मैडम जी
”
मैडम-मैडम छुट्टी दो,
मम्मी को बुखार है,
घोड़ा तैयार है
घोड़े की टांग टूटी,
मलहम लगाएंगे,
मलहम पे मक्खी बैठी,
चादर ओढाएंगे,
चादर का कोना फटा,
दरजी बलाएंगे.
दरजी की सूई टूटी
लोहार बुलाएंगे,
लोहार की टांग टूटी,
डॉक्टर बुलाएंगे
डॉक्टर की टोपी उड़ी
ताली बजाएंगे.
( स्रोत-एकलव्य-भोपाल
से प्रकाशित-बैठ घोड़ा पानी पी)
(photo credit - google search)