Wednesday, April 15, 2020

बाल कहानी - पापा मान जाइए प्लीज!


05/09/1959 को  कानपुर उत्‍तर प्रदेश में जन्मे जाने-माने पत्रकार, नेशनल दुनिया के पूर्व सम्पादक  और चार  चर्चित उपन्यासों  ( मुन्नी मोबाइल, तीसरी ताली, देश भीतर देश, और सिर्फ तितली ) के प्रणेता  प्रदीप सौरभ  का नाम आज हिंदी साहित्य तथा पत्रकारिता जगत में  सुविदित है. टी.वी पर प्रसारित बहस-मुबाहसों में  उनकी  बेवाक टिप्पणियां  चर्चा का विषय रही हैं. लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि प्रदीप सौरभ ने लीक से हटकर बच्चों की कहानियां, कवितायें भी लिखीं हैं और हिंदुस्तान टाइम्स प्रकाशन समूह की लोकप्रिय पत्रिका  साप्ताहिक हिंदुस्तान में उनके द्वारा सम्पादित बाल-स्तम्भ  "भानुमती का पिटारा" अपने समय में काफी लोकप्रिय रहा है. आज यहाँ प्रस्तुत है उनकी एक प्रेरक बाल कहानी -


प्रदीप सौरभ 


पापा मान जाइए, प्लीज!
- प्रदीप सौरभ 
     इधर कई दिनों से पापा परेशान दिखाई देते हैं। रात को ठीक से सो भी नहीं पाते। रात-रात भर खों-खों खांसते रहते हैं। दरअसल उन्हें सांस फूलने की पुरानी बीमारी है। पिछले कई सालों से वह इस बीमारी से परेशान रहे। क्या-क्या इलाज नहीं हुआ! बड़े से बड़े डॉक्टर को दिखाया गया। सभी की एक राय थी, ‘‘डॉ. व्यास, आप सिगरेट छोड़ देते तो जरूर ठीक हो जाते!’’ लेकिन पापा थे कि सिगरेट छोड़ ही नहीं पाते थे। खत्म होती सिगरेट से ही दूसरी सिगरेट जलाने की उनकी आदत थी। ऐसा नहीं है कि उन्होंने सिगरेट छोड़ने की कोशिश ही न की हो! खूब की! पर छोड़ न सके। ताज्जुब की बात तो यह थी कि वह खुद भी बहुत बड़े डॉक्टर थे। वह सिगरेट पीने के नुकसान-फायदे से अच्‍छी तरह वाकिफ थे। कई बार मरीजों को सिगरेट से होने वाले नुकसान के बारे में बताते हुए भी मैंने उन्हें देखा है। पर पापा तो पापा, सिगरेट भला कैसे छूट सकती है!
     पापा को तड़फते देखकर मुझे और बहन गुड्डी को बहुत-बहुत दुख होता। कई-कई बार हमने सोचा भी कि पापा से सिगरेट छोड़ने के लिए कहें। पर कभी भी हमारी हिम्मत न हुई। एक बार तो मैं कहते-कहते रह गया- जुबान तालू से लग गई। अक्षर मुंह से फूटे ही नहीं।
     मुझे खूब याद है, उस सुबह, पापा ड्राइंग-रूम में बैठे अखबार पढ़ रहे थे। हम दोनों स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे। नाश्ता वगैरह करके जब हम दोनों स्कूल जाने के लिए निकले, तब गुड्डी ने पापा को एक पत्र दिया और कहा, ‘‘मेरे अच्छे-अच्छे पापा, इसे तब ही खोलिएगा, जब हम घर पर न हों।’’ पापा ने अखबार पढ़ते हुए स्वीकृति में सिर हिला दिया। और हम लोग किताबें-कापियां संभालते हुए स्कूल गए।
     शाम को जब हम दोनों स्कूल से लौटे, तब मम्मी घर पर नहीं थी। पापा कुर्सी पर अधलेटे सिसक रहे थे। ऐसा लग रहा था कि वे काफी देर से रो रहे हों। उनके सामने मेज पर रखी हुई कई पैकेट सिगरेट तुड़ी-मुड़ी पड़ी थीं। यह सारा दृश्य देखकर गुड्डी की आंखों में आंसू डबडबा आए। मैं एकदम चुप! क्या हुआ? यह सब क्या हो रहा है, मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ा। एक क्षण गुड्डी दरवाजे पर खड़ी कुछ सोचती रही। पर अगले ही क्षण वह बस्ता एक तरफ फेंकर पापा से लिपट गई। सिसक-सिसककर कहने लगी, ‘‘पापा, मुझे माफ कीजिए। मेरे ही कारण आपको दुख पहुंचा है न!’’
     ‘‘नहीं बेटी, नहीं।’’ पापा गुड्डी के बालों पर प्यार से हाथ फेरते हुए करुण आवाज में बोले, ‘‘अरे पगली! यह तू क्या कह रही है? जिस निगोड़ी सिगरेट को मैं चाहकर नहीं छोड़ पाया, उसे तूने एक क्षण में छुड़ा दिया। सच! तू तो मुझसे बड़ी डॉक्टर है। अब मैं कभी भी सिगरेट नहीं पियूंगा।’’
     उस समय पापा बहुत खुश दिख रहे थे। गुड़डी भी अपनी सफलता से मन-ही-मन बहुत खुश थी। पर, मैं परेशान था। मुझे यह नहीं समझ आ रहा था कि आखिर गुड्डी ने पत्र में ऐसा क्या लिख दिया था कि जिसे पढकर पापा ने सदा-सदा के लिए सिगरेट छोड़ दी थी। मैं कमरे में बैठा अभी यही उधेड़-बुन कर रहा था कि गुड्डी आ गई। मैंने पत्र के बारे में जब पूछा, तब वह मुस्कराई, ‘‘एक मिनट ठहरो। कहकर वह ड्राइंग रूम की ओर चली गई। ड्राइंग रूम में जाकर वह कुछ ढूंढने लगी। थोड़ी देर इधर-उधर खोजने के बाद बाद एस्ट्रे के नीचे दबा हुआ वह पत्र उसे दिख गया। उसे लेकर वह मेरे पास वापस आ गई। उसने पत्र मेरे हाथों में रख दिया। अक्षरों पर मेरी आंखें दौड़ने लगीं..........’’
     मेरे प्यारे पापा,
      आपको तो मालूम ही है कि हम सब आपको कितना चाहते हैं। इधर आपके कमजोर बदन को देखकर हम सब बहुत दुखी हैं। मैं सदैव ईश्वर से आपके अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करती रहती हूं। आपने शायद यह कभी न सोचा होगा कि यदि आपको कुछ हो गया, तो उसके बाद हमारा क्या होगा? आप मुझे बहुत चाहते हैं- उस दिन कह रहे थे कि आप मुझे भी डॉक्टर बनाएंगे। भैया इंजीनियर बनेगा। आप मेरी एक रिक्वेस्ट मान जाएं, प्लीज पापा! बस, आप सिगरेट पीना छोड़ दें! तब हम भाई-बहन भी खूब पढ़ेंगे, डॉक्टर बनेंगे, इंजीनियर बनेंगे। आपसे मैं कहे देती हूं कि यदि आज से आपने सिगरेट पीना नहीं छोड़ा, तो आज से मेरी आप से कट्टी है। हां, आपने मेरी बात नहीं मानी, तो आज से मैं खाना भी नहीं खाऊंगी।
आपकी प्यारी बेटी
गुड्डी
     कब मेरी आंखों में आंसू आ गए, मुझे पता ही नहीं चला। मैं बड़ी मुश्किल से बोल पाया, ‘‘शाबाश मेरी अच्छी दीदी....।’’
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