विज्ञान बाल कथाओं की एक अनूठी
पुस्तक
- रमेश तैलंग
हिंदी बालसाहित्य में विज्ञान पर आधारित कथाओं का सृजन
जो गिने-चुने लेखक कर रहे हैं उनमें
विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी का नाम अग्रिम पंक्ति में आता है. चतुर्वेदी जी विज्ञान
की दुरूह अवधारणाओं को कथा का आधार बना कर न केवल कहानी को शिक्षा का सहज माध्यम
बनाते हैं बल्कि बच्चों की जिज्ञासु प्रवृत्ति को भी वे अपनी कहानियों के ज़रिये एक
तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाते हैं. यह एक दोहरा काम है जो कई तरह के खतरों से भरा
है. खतरे इस मायने में कि एक और तो आपको सही वैज्ञानिक तथ्यों का ध्यान रखना है और
दूसरी ओर बाल मनोविज्ञान के दायरे में कथा की रोचकता भी बनाए रखनी है.
चतुर्वेदी जी का हाल में प्रकाशित
बाल कथा संग्रह “परियां फिर लौट आईं” इन दोनों मानदंडों को केंद्र में
रख कर लिखा गया है. इस संग्रह में लेखक की २५ विज्ञान बाल कथाएं हैं जो पाठकों को कथारस
के साथ-साथ कार्य-कारण संवंध के आधार पर उस कथा सूत्र का वैज्ञानिक विश्लेषण भी
अलग से प्रस्तुत करती हैं. इसमें कोई संदेह नहीं कि इस तरह की कहानियां एक विशेष
उद्द्येश्य को सामने रख कर लिखी जाती हैं और उनमें वह स्वाभाविक सहजता नहीं रह
पाती जो उन कहानियों में दिखती है जहाँ
कहानी का अंत कहां होगा, स्वयं लेखक को पता नहीं होता. फिर भी ऐसे कथा प्रयोग
विज्ञान और साहित्य के अन्तःसम्बन्धों को परिभाषित तथा प्रगाढ़ करने में अत्यधिक
सहायक होते हैं और चतुर्वेदी जी की यह
पुस्तक इस दिशा में एक आवश्यक हस्तक्षेप करती है.
“परियां फिर लौट आईं” की कुछ कहानियों के शीर्षक भी काफी रोचक हैं
और जिज्ञासु पाठकों को आकर्षित कर सकते हैं. उदाहरण के लिए –अजगर हुआ पंक्चर, डीजल का पेड़, भोजनशाला का सबक , कुँए
का भूत, परियां लौट आईं, कोई नहीं स्थिर यहाँ, सब गतिमान है, तिथि क्यों टूटी,
शून्य है पृथ्वी का भार, नीली पहाड़ी के पीछे, निशा नगर का राजकुमार शुक्र, ओ पापड वाले पंगा न ले.”
कथा शीर्षकों को देखकर ही लगता
है कि लेखक बच्चों की रुचियों को भरपूर समझता है. गौर से देखा जाए तो इस संग्रह की
हर कहानी एक सवाल का एक जवाब है जो सीधे-सीधे न दे कर कहानी के ज़रिये दिया गया है.
इसलिए ये कहानियां यहाँ केवल बच्चों को ही शिक्षित नहीं करती बल्कि उन शिक्षकों को भी, जो विज्ञान से
सामान्यतः दूर रहें हैं, शिक्षित करती है. इसी बिन्दु को जरा और विस्तार देते हुए अब संग्रह की इन्ही
कुछ कहानियों पर थोड़ी चर्चा कर ली जाए. तो
समीचीन होगा. “अजगर
हुआ पंक्चर’ जानवरों को
पात्र बनाकर लिखी गई रोचक कहानी है. यह तो सभी जानते हैं कि अजगर जब किसी भी
प्राणी को अपने शिकंजे में जकड लेता है तो उसके प्राणों के लाले पड़ जाते हैं कारण,
शिकार से लिपटने के बाद अजगर अपने फेफड़ों में हवा भरता जाता और शिकार का दम घुटने
लगता है लेकिन यदि अजगर के फूलते शरीर में नुकीली और पैनी चीज चुभो दी जाए तो उसकी पकड़ ढीली पड़
जाती है और जब मिंकू कछुवा अजगर की लपेट में आया तो रोमी, चीकू और छन्कू ने इसी
तरह सेही के कांटे चुभोकर अजगर से मिंकू को बचाया. नकची लोमड़ी की चाल धरी की धरी
रह गई.
डीजल का पेड़ का नाम आपने भले ही न सुना हो पर जब
खारिया-मीठापुर के लोग वर्षा की कमी के कारण फसल न होने की चिंता करने लगे और जब
उन्हें पता चला कि रतनजोत नाम की झाडी से प्राप्त बीजों का तेल डीजल का विकल्प बन
सकता है और यह झाडी उस ज़मीन पर भी उग सकती है जहाँ फसल नहीं होती, तो उनकी
सारी चिंताएं दूर हो गई और उन्होंने
रतनजोत को अपना कर अपनी आमदनी का अच्छा उपाय ढूंढ लिया.
‘भोजनशाला का सबक’ कहानी में भोजनोपरांत भोजन की थाली में बचे
अन्नकणों को पानी डालकर पी जाना आज के ज़माने में दकियानूसी भले ही समझा जाए पर
उसकी भी एक उपयोगिता है. वह क्या है, इस कहानी को पढ़कर भली-भांति समझा जा सकता है.
कुँए का भूत उस
अंधविश्वास का निराकरण करती है जिसके तहत अज्ञानी लोग गहराई में
नीचे उतरने पर जहरीली गैसों के कारण दम घुटने की घटना को भी भूत का कारनामा
मानते हैं
‘परियां लौट आईं’ की आधारभूमि बिगड़ते पर्यावरण की और लोगों का ध्यान
आकर्षित करना हैं. परियों को आसमान से धरती पर आना तभी अच्छा लगता है जब धरती पर
प्राकृतिक संतुलन और स्वस्थ पर्यावरण की उपस्थिति बनी हो अन्यथा वे भी यहाँ आते
हुए घबराती है.
संग्रह की अन्य कहानियां भी इसी तरह विज्ञान का कोई न कोई
सूत्र अपने में निहित किये हुए हैं और इस सूत्र की समझ विकसित करने के साथ वे
सामान्य पाठक को वह सन्देश भी देती है जो
लेखक कहानी के जरिये पाठक तक पहुंचाना चाहता है.
आशा की जानी चाहिए कि
चतुर्वेदी जी की यह नई कथापुस्तक विज्ञान आधारित बाल कथासाहित्य में न केवल उपयोगी
सिद्ध होगी बल्कि नए लेखकों को भी आगे बहुत कुछ जोड़ने की प्रेरणा देगी.
समीक्ष्य पुस्तक :
परियां फिर लौट आईं
लेखक – विष्णु प्रसाद
चतुर्वेदी
प्रकाशक – साहित्य
चन्द्रिका प्रकाशन
२४ न्यू पिंक सिटी मार्किट, सिद्धेश्वर मंदिर के पीछे,
पंचवटी, राजा पार्क, जयपुर – राजस्थान
संस्करण – २०१३, मूल्य – २००/- रुपये मात्र.
संपर्क :
रमेश तैलंग
५०६ गौड़ गंगा-१, सेक्टर -४
वैशाली – २०१०१२ (गाज़ियाबाद)
मोबायल – ०९२११६८८७४९
धन्यवाद रमेश जी।
ReplyDeleteधन्यवाद रमेश जी।
ReplyDelete