साल पुराने जा रे जा!
साल पुराने जा रे जा!
कपडे नए पहन कर आ!
झगडा- कुट्टी
माथा-फुट्टी
नए साल में
सबकी छुट्टी
रोनी-धोनी दूर भगा
हंसी-हंसी फिर वापस ला!
वैर की बातें
झूठ की बातें
टूट की बातें
फूट की बातें
अब न हमको याद दिला
हँसे-खुशी फिर मेल मिला!
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नया वर्ष आ गया बजाता मंजीरे
गए वर्ष की आँख मुंदी धीरे-धीरे
नया वर्ष आ गया बजाता मंजीरे.
पिछली वैर भरी बातें
डुबो समुन्दर में
हवा गुनगुनाती आई
गीत नए स्वर में
उडी गुलाबी गंध
घोल कर मस्ती रे!
नया वर्ष आ गया बजाता मंजीरे.
पीछे छूटा गाँव
याद कर रोना मत
आगे बढ़ते रहना
साहस खोना मत
संघर्षों के तले
ज़िन्दगी पलती रे!
नया वर्ष आ गया बजाता मंजीरे.
- रमेश तैलंग -
चित्र सौजन्य : गूगल
Dono hi geet bahut joshpurna aur shandar hain....hardik badhaiyan bhai sahab....
ReplyDeleteHemant
नए वर्ष की कविता बहुत कुछ सिखा गई । मैं भी नए साल में झगड़ा कुट्टी -माथा फुट्टी सबकी छुट्टी कर दूँगी -रहा वायदा नए साल से ।
ReplyDeleteसुधा भार्गव