Saturday, June 29, 2013

एक अछूते विषय पर किशोर उपन्यास



फिर सुबह होगी
- रमेश तैलंग

संजीव जायसवाल "संजय" हिंदी के प्रमुख बालसाहित्यकार हैं. हाल में प्रकाशित उनका किशोर उपन्यास "फिर सुबह होगी" दो मायने में महत्वपूर्ण है. पहला, इसकी कथावस्तु एक ऐसे अछूते विषय को लेकर  है जिस पर हिंदी बाल/किशोर साहित्य में अब तक शायद ही किसी ने कुछ लिखा हो.. दूसरा, इसका रचनात्मक ताना-बाना  यथार्थ और फंतासी का एक अद्भुत योग है जो हमारी विचार तंत्रिका को एक बार झंकृत अवश्य करता है.
      भविष्य को किसी ने नहीं देखा पर वर्तमान में जिस तरह कुछ मुट्ठी भर सत्ता संपन्न लोगों ने प्राकृतिक संसाधनों पर एकाधिकार करने की कोशिशें जारी रखी हैं और जिस तरह वैज्ञानिक तकनीक के दुरूपयोग से प्राकृतिक असंतुलन पैदा हो रहा है वह जीव-जगत के विनाश की एक भयावह तस्वीर प्रस्तुत करता है. मानवता के समर्थक बुद्धिजीवियों को अब चिंता हो रही है की आज से पचास-सौ साल बाद की दुनिया कैसी होगी जब ग्लोबल वार्मिंग  और अशुद्ध वातावरण के बीच भोजन, जल की अप्रत्याशित  कमी हो जायेगी और जीवन यापन की मुश्किलें अपने चरम स्तर तक बढ़ जायेंगी. समूची सृष्टि  के लिए यह एक अंधकारमय युग होगा. क्या इस अन्धकार से बाहर निकलने का सपना सच हो पायेगा. क्या फिर सुबह होगी....? संजीव जायसवाल अपने प्रस्तुत उपन्यास में दो किशोरों  -विशाल और प्रियंका को मुख्य पात्र बनाकर एक ऐसी वैज्ञानिक कथा बुनते हैं जो भले ही अविश्वसनीय हो पर पाठकों को बांधे रखने में जरूर सफल है.
      यूँ तो हर कथा में नायक और खलनायक होते हैं उसी तरह इस उपन्यास में भी हैं. एक और प्रोफ़ेसर रॉय हैं जो नष्ट हो गई वनस्पतियों को जीवाश्मों द्वारा पुनः  सृजित करने के अथक प्रयास कर रहे हैं और दूसरी और जिब्राल्टर जैसे लोग हैं जो समूची दुनिया को अपनी हबस का शिकार बनाने का सपना संजोये हैं. इस द्वंद्व में सरकारों की भूमिका न केवल शोचनीय है बल्कि एक तरह से दयनीय भी है. जीवनयापन के संसाधन जब सीमित हों और आबादी पर प्राणों के लाले पड़े हुए हों तो गृह युद्ध की स्थिति आ जाती है...इस पूरे संकट से निपटने में दो किशोर विशाल और प्रियंका किस तरह अपनी भूमिका अदा  करते हैं, यही इस उपन्यास की मुख्य कथावस्तु है. 
      "फिर सुबह होगी" उपन्यास लिखने की प्रेरणा  संजीव जायसवाल को कब और कैसे मिली यह तो नहीं कहा जा सकता पर अंग्रेजी में ऐसी कई कथात्मक और गैरकथात्मक पुस्तकें प्रकाशित हैं जो पचास-सौ साल आगे की दुनिया की संभावित तस्वीर प्रस्तुत करती हैं और जिसमें रोबोटों/नैनोबोटों के आश्चर्यजनक कारनामों के अलावा भोजन के विकल्प के रूप पिल्स यानी गोलिओं का ज़िक्र है..  १९१३ में एल फ्रैंक बाम की एक पुस्तक आई "द पेचवर्क गर्ल ऑफ ऊज" जिसमे प्रोफ़ेसर वोबेल्बग एक ऐसी गोली/आविष्कृत करते हैं जो सम्पूर्ण भोजन का विकल्प है.  कई साइंटिफिक मूवीज में भी आगामी समय की किचेन कैसी होगी इसका सन्दर्भ है. लेकिन यह भी सच है कि  अभी भी दुनिया के वैज्ञानिकों को ये भरोसा है की आगामी समय इतना खराब नहीं आएगा. उनका मानना है की विकसित तकनीक अपने विकल्प ढूंढ ही लेगी, संभव है आगे की आबादी पूर्णतयः शाकाहारी हो जाए, वैकल्पिक नैसर्गिक ऊर्जा के नए साधन मिल जाएँ जो जीवन को बचाए रखें ...कुछ भी हो यह तो आगामी समय ही बतलायेगा पर संजीव के इस उपन्यास तक ही बात सीमित रखें तो यह कहा जा सकता है कि  "फिर सुबह होगी" उपन्यास किशोर पाठकों को रुचिपूर्ण अवश्य लगेगा. पेंगुइन की सहसंस्था पफिन बुक्स से प्रकाशित यह कृति पेपरबैक में है और  इसका पाठकीय इस्तेमाल सफ़र में पढी जाने वाली अन्य  लोकप्रिय पॉकेट बुक्स की तरह भी किया जा सकता है.
      संजीव जायसवाल  ने अब तक  हवेली, डूबा हुआ किला आदि जितने भी बाल उपन्यास लिखे हैं उनसे "फिर सुबह होगी" उपन्यास अपने विषय और ट्रीटमेंट में बिलकुल अलग है और इसके बावजूद की बहुत से पाठकों को  यह भी एक तरह की अपराध कथा (चाहे वह साइबर जगत की ही क्यों न हो)  लगे, यह कृति दुसरे समकालीन बालसाहित्यकारों के लिए एक  चुनौती अवश्य सिद्ध होगी.##



समीक्ष्य कृति:

फिर सुबह होगी  (किशोर उपन्यास)
लेखक - संजीव जायसवाल "संजय"
प्रकाशक -पफिन बुक्स / पेंगुइन बुक्स इंडिया (प्रा) लि.
नई दिल्ली

प्रथम संस्करण २०१२, पेपरबैक मूल्य- १५०/- रुपये

2 comments:

  1. इस उपन्यास द्वारा संजीव जाइसवाल "संजय" जी ने एक नयी लेखन शैली को प्रसतूत किया है। हिन्दी पाठको और लेखक्कों के लिए यह पुस्तक उतशाह वर्धक सिद्धह होगी.

    ReplyDelete
  2. एक अच्छे उपन्यास के लिए संजीव जायसवाल जी को बधाई और शुभ कामनाएं
    शक्ति प्रकाश

    ReplyDelete