नासिरा शर्मा
अनेक शीर्ष पुरस्कारों से सम्मानित, वरिष्ठ कथालेखिका नासिरा शर्मा ने हिंदी साहित्य जगत को अनेक महत्वपूर्ण कृतियाँ दी हैं यथा - ठीकरे की मंगनी,पारिजात, मेरी प्रिय कहानियां, अजनबी जजीरा, पत्थर गली तथा औरत के लिए औरत. इन कृतियों के अलावा नासिरा जी ने बच्चों के लिए भी अनेक रोचक कहानियां लिखी हैं. उनके अनेक कहानियां बच्चों की श्रेष्ठ पत्रिकाओं जैसे नंदन,चकमक, में प्रकाशित होती रही है
आज प्रस्तुत है नासिरा जी की एक नई बाल कहानी-
दो सखियाँ
नासिरा शर्मा
गर्मी का मौसम था। पेड़ों
का साया भी जानवरों को भा नहीं रहा था। आसपास
के ताल सूख गए थे। प्यास
लगने पर वह जंगल से बाहर बहने वाली नदी पर पानी पीने
जाते थे। ऐसे मौसम में
जंगल में रहने वाली हिरणी की तबियत ख़राब हो गई। दिन भर
झाड़ी के पास पड़ी हाँफती
रहती। जहाँ घने पेड़ की छाया थी। उसकी चिन्ता अपने छौने
को लेकर थी। जो अभी पैदा
हुआ था और ख़ुद से घास नहीं चर सकता था। दुश्मन के
आने पर वह छलाँगे मार दौड़
नहीं सकता था। उसकी टाँगे अभी नर्म और मुलायम थीं !
हिरणी को याद आया कि उसके
बचपन की सखी कुछ दूर पर कटीली झाड़ियों
के उस पार रहती है। जब तक
वह बीमार है। उसके छौने की देखभाल वह कर लेगी। ऐसा
सोच कर वह छौने को ले धीरे
धीरे चलती हुई झाड़ियों के पास पहुँची और लगी सखी को
आवाज़ देने। जल्द ही थक गई
और सुस्ताने के लिए वहीं ज़मीन पर बैठ इन्तज़ार करने
लगी। छौना आज पहली बार
बाहर निकला था। उसको सब कुछ नया नया लग रहा था।
माँ प्यार से उसका बदन चाट
रही थी। तभी झाड़ियों के पीछे से हिरणी की सखी ‘आहू’
आ
गई और पुरानी सखी को घर
आया देख खुश हो गई।
”कैसी हो गज़ाल ?“ आहू ने पूछा।
”बहुत बीमार ! गर्मी तो देख रही हो कैसी बला की पड़ रही है।
जाने बारिश कब आयेगी
?“
गज़ाल ने जवाब दिया।
”बादल आते हैं और चले जाते हैं।“ आहू बोली।
”कुछ दिनों के लिए अगर तुम मेरे छौने को अपने पास रख लेतीं
तो मैं कुछ दिन चैन से
सो सकती हूँ, बदन की थकान उतार आराम कर सकती हूँ।“
”ज़रूर, ज़रूर गज़ाल !
तुम बेफिक्र रहो।“
आहू ने छौने को प्यार से चाटा। यह देख गज़ाल
ने इत्तमिनान की साँस भरी
और धीरे धीरे अपनी झाड़ की तरफ लौट पड़ी। उसका मन
सखी के इस बर्ताव से खुश
था !
कुछ दिन गुज़र गए !
बारिश की छीटों ने मौसम की
आग बुझा दी।
छोटे छोटे गड्ढे पानी से
भर उठे। पेड़ों की पत्तियाँ नहा कर चमक उठीं। गज़ाल का जी
संभल गया ! उसे अपने छौने
की याद आई !
ग़ज़ाल छौने की याद मन में
बसाए झाड़ियों के पास पहुँची और बेचैन हो पुकार उठी -
”आहू ... आहू !“
वह जल्द से जल्द छौने को
देखना चाहती थी। अब वह बड़ा हो गया होगा। उसके पैर लम्बे
और मज़बूत हो गए होंगे।
उसने चरना सीख लिया होगा। मुझे देखते ही वह कुलाचें भर
मुझ से लिपट जायेगा।
”कैसे आना हुआ गज़ाल“, आहू ने आकर सूखे स्वर में पूछा।
”अपने छौने को लेने आई हूँ।“ गज़ाल ने सखी की ओर प्यार से देखा।
”तुम्हारा छौना, यहाँ तो नहीं आया !“
कह कर आहू लापरवाही से वापस जाने लगी।
”अरे भूल गईं ? मैं ख़ुद लेकर आई थी। गर्मी से मैं बीमार पड़ गई थी सो कुछ दिन तुम्हारे
पास छोड़ गई थी, याद आया ?“ ग़ज़ाल सखी की
शरात जान हँस पड़ी।
”तुम्हें ग़लतफहमी हुई है। मुझे तो याद नहीं।“ इतना कह आहू ने पैर से ज़मीन पर लकीरें
खींची तभी एक सुन्दर सा
छौना उससे लिपट कर खड़ा हो गया। ग़ज़ाल ने उसे फौरन ही
पहचान लिया कि यह उसी के
जिगर का टुकड़ा है। उसकी आँखें भर आईं। वह छौने को
चाटने आगे बढ़ी तभी आहू ने
छौने को अन्दर जाने को कहा और झिड़क कर बोली।
”बीमारी ने तुम्हारी मत मारी है। गर्मी दिमाग़ पर चढ़ गई है जो
मेरे छौने को अपना छौना
बता रही हो। जाओ, यहाँ से फिर कभी इधर मत आना !“ आहू ने गुस्से में खुर पटके !
”कैसी बातें कर रही हो सखी !“ ग़ज़ाल ने दुख भरे स्वर में कहा और बेहाल सी वहीं बैठ
गई। जाती भी कहाँ ? बच्चा लेने आई थी लेकर जायेगी। इसलिए थोड़ी थोड़ी देर बाद
पुकार उठती सखी ! मेरे
छौने को मुझे लौटा दो। सखी मेरे साथ ऐसा मज़ाक मत करो, मैं
बेमौत मर जाऊँगी।
अन्दर पहुँच कर ‘आहू’
ने छौने को प्यार से चाटना शुरू कर दिया ! छौना भी दुलार से
अपना मुँह और बदन आहू के
बदन से रगड़ने लगा।
”तू मेरी आँखों का तारा है। तुझे मैं कैसे लौटा सकती हूँ ? तेरे बिना मैं जी नहीं पाऊँगी।
तू मुझे जब माँ पुकारता है
तो मैं झूम झूम उठती हूँं। इस खुशी को गज़ाल स्वार्थी क्या
जानें ? ज़रा सी तबियत बिगड़ी तो अपनी औलाद दूसरे को दे डाली। अरे, मैंने कष्ट
उठाया। रात रात भर जाग कर
छौने की देखभाल की है। उसकी परवरिश मैंने की है। उस
पर मेरा सिर्फ मेरा अधिकार
है।“
आहू ने मन ही मन कहा।
”जो ग़ज़ाल ने शोर मचाया। पंचायत बुलाई तो ?“ शंका उभरी !
”उसकी बात पर कौन य़कीन करेगा ? पैदा होने के दो दिन बाद तो वह छौने को मुझे दे
गई थी।“ इतना सोच आहू ने आँखें बन्द की और गहरी नींद में डूब गई !
उधर गज़ाल की आँखों से नींद
रूठ चुकी थी। न चाहने के बावजूद उसकी आँखों से आँसू
गिर रहे थे। उसे अपनी गलती
का अहसास हो रहा था कि क्यों उसने अपने छौने को अपने
से अलग कर सखी को दे दिया।
उसकी सुन्दरता देख,
उसकी नियत बदल गई। अब वह
कहाँ जाए, किस से न्याय माँगे। इसी सोच विचार में सुबह हो गई।
झाड़ियों के पीछे से छौनों
का झुँड उछलता कूदता बाहर निकला। ग़ज़ाल ने
बेताब हो छौने को देखा और
पुकार उठी। तभी गुस्से से भरी आहू पहुँच गई और चीख कर
बोली।
”तुम फिर आ गई ?“
”मैं गई कहाँ थी ? मुझे मेरा छौना चाहिए। मैं उसे लेकर ही यहाँ से जाऊँगी। तुम मेरे साथ
धोखा नहीं कर सकती हो।“ गज़ाल के तेवर पर बल पड़ गए।
”तो क्या कर लोगी ? कोई सबूत है तुम्हारे पास कि यह छौना तुम्हारा है ?“ आहू चीखी।
”हाँ ! इसको मैंने जन्म दिया है। जन्म के समय मेरी चीखों को
सुन कर दोनों ख़रगोश अपने
बिलों से निकल आए थे और
बन्दर भी डाल से कूद मेरे पास आन बैठा था। वे तीनों गवाही
देंगे।“ गज़ाल रुहाँसी हो बोली !
”कहाँ रहती हो ? दोनों खरगोश्या कब के शिकार हो गये और बन्दर सड़ा सेब खाने से मर
गया है। तीनों ज़िन्दा नहीं
हैं।“
कह कर आहू ज़ोर ज़ोर हँसने लगी। उसकी हँसी देख
गज़ाल को अपनी बेबसी का
अहसास हुआ और वह सुबक सुबक कर रोने लगी। उसको यूँ
रोता देख पहले तो आहू
घबराई फिर डपटकर बोली।
”अपने घर जाओ ! सुबह सुबह आ हमारा रास्ता खोटा मत करो।“ कहती हुई आहू आगे बढ़
गई। मजबूर सी ग़जाल कुछ पल
खड़ी रही फिर टूटे मन से वापस लौटने लगी। निराशा
से वह टूट चुकी थीं उसे
अपने छौने की वापसी की अब कोई आशा दूर दूर तक नज़र नहीं
आ रही थी ! वह निढ़ाल सी
जाकर अपनी झाड़ के पास बैठ गई।
एक दिन और गुज़र गया।
हिरणी ने कुछ नहीं खाया।
भूख प्यास जो मरी सो मरी साथ ही उम्मीद भी मर गई।
ख़रगोश और बन्दर उसके
पुराने पड़ोसी थे। कहने को तो पूरा जंगल उसे जानता है मगर
छौने की बात तो वही तीनों
जानते थे।
एक दिन और गुज़र गया।
हिरणी ने कुछ खाया पिया
नहीं। बस आँखों के सामने छौने की छबि बार बार उभरती थी।
आह भर कर रह जाती।
”सखी पर भरोसा कर बहुत बुरा किया !“
उसका कहा जुम्ला जंगल की
हवा अपने साथ चारों तरफ ले जाने लगी। कुछ
देर बाद यही एक वाक्य
सरसराता हुआ पूरे जंगल में डोलने लगा :
”सखी पर भरोसा कर बहुत बुरा किया !“
जानवरों में से बहुतों ने
सुना अनसुना कर दिया मगर बहुतों ने ध्यान से सुना
और सोचा कि यह किसके मन की
पीड़ा है ?
बूढ़ी शेरनी ने सुना तो वह ठिठकी। हवा जब
बार बार यही सन्देशा देने
लगी तो उससे रहा नहीं गया और वह आदत से मजबूर हो जंगल
की खैर खबर लेने पहुँच गई।
घने पेड़ों और झाड़ियों से
गुज़र,
मैदान पार कर जब पहाड़ियों की तरफ मुड़ी तो
उसे वह आवाज़ साफ सुनाई
देने लगी। कुछ दूर और चली तो उसने माँद के सामने गज़ाल
को बैठा देखा जो हाल से
बेहाल पड़ी,
ठंडी आहें भर रही थी ! शेरनी पास पहुँची और उसने
आदत के मुताबिक आगे के पैर
उठा ताली बजाई। जबसे उसने अदालत लगानी शुरू कर
दी थी तब से उसने गुर्राना
और चिंघाड़ना बन्द कर दिया था। दाँत भी गिर गए थे। तेज
पंजों के नाखून भी घिस
चुके थे। उससे जानवरों ने डरना बन्द कर दिया था। और आदर
करना शुरू कर दिया था।
ताली की आवाज़ सुन ग़ज़ाल चौंकी। अपने सामने बूढ़ी शेरनी
को खड़ा देख वह अपने को रोक
न पाई और उसके पास पहुँच फूट फूट कर रोने लगी।
”अपना दुख बयान करो। यूँ रोने से मुश्किल हल नहीं होगी।“ शेरनी के कहने से हिरणी ने
अपनी सारी बिपदा कह सुनाई
और अन्त में अपनी कठिनाई भी कह सुनाई कि उसके पास
छौने को वहाँ रखने का न
कोई सबूत है और न गवाह !
उसकी बात सुन शेरनी
मुस्कुराई ”दोस्ती ‘गवाह’ और ‘सबूत’ नहीं मांगती
है। वह केवल
एतबार चाहती है। तुम्हारे
साथ धोखा हुआ है। तुम कल अदालत आओ। पंचायत तुम्हारी
इस ‘गिरह’ को खोलेगी।“
इतना कह कर बूढ़ी शेरनी चली
गई। गज़ाल ने अपना माथा पीटा।
”मुसीबत के वक़्त अक़ल भी काम नहीं करती है। मुझे पंचायत का
ख़्याल ही नहीं आया !“
सुबह सूरज की नारंजी
किरणों ने पूरे जंगल को सुनहरा बना दिया तब गज़ाल
माँद से निकली। वह सारी
रात सोई नहीं थी। चाल में ढीलापन था। मन बुझा बुझा सा था।
जब वह पंचायत की गली में
मुड़ी तो देखा ‘आहू’
भी छौने के साथ आगे आगे जा रही है।
उसका दिल धड़क उठा। उसने
अपनी चाल तेज़ कर दी।
अदालत का पंचायती मैदान
जानवरों से भरा था। बूढ़ी शेरनी के दायें बायें बूढ़ी
भेड़नी, लोमड़ी, उकाब और अजगर
बैठे हुए थे। मादाएँ ज़्यादा थीं। बूढ़ी शेरनी ने कार्रवाई
शुरू की और दोनों हिरणियों
ने अपनी अपनी कह सुनाई। जो हिरण हिरणी वहाँ मौजूद थे।
उनके भी समझ में नहीं आया
कि असली माँ की पहचान कैसे होगी। छौना तो आहू के साथ
है और गज़ाला को कभी किसी
ने छौने के साथ जंगल में घूमते देखा नहीं और दोनों दावा
कर रही हैं कि छौना उनका
है !
कुछ देर सन्नाटा छाया रहा।
पंचों ने आपसी सलाह-मशविरा कर कहा कि दोनों
माआएं कल नदी की तेज धार
वाले किनारे पर छौने के साथ पहुँचें। वहीं पर फैसला सुनाया
जायेगा। सभा बरख़ास्त हुई
और जानवर आपस में बातें करते अपनी अपनी दिशा की तरफ
बढ़ने लगे। उन्हें पंचों पर
विश्वास तो था मगर समझ नहीं पा रहे थे कि फैसला कैसे होगा।
भोर के समय झरने किनारे सब
जमा थे। छौना भी आहू के साथ खड़ा था। बूढ़ी
शेरनी ने ताली बजा कर सबको
ख़ामोश किया और गला साफ कर बोली।
”छौने को उठा कर बहते झरने की तेज धार में फेंक दिया जाए।“ सुन कर ऐसा सन्नाटा
छाया कि लगा जंगल में कोई
रहता ही नहीं है। जब वही हुक्म दोबार दोहराया गया तो
पास की डाल पर बैठा जवान
बन्दर उतरा और ‘छौने’ को उठा, उसने बहते पानी में फेंका।
यह देख सब जम से गये। सब
की साँसें थम सी गईं मगर गज़ाल बेचैन हो उठी और बहते
छौने के साथ नदी के
किनारे-किनारे दीवानी हो दौड़ने लगी। उसकी आँखों से पानी बह
रहा था ! सब ने देखा :
आहू चुपचाप बैठी थी।
गज़ाल दौड़ रही थी।
कोई कुछ समझ नहीं पा रहा
था कि छौने का क्या होगा।
जब बेताब हिरणी बहते पानी
में छौने को बचाने कूदने लगी तो बूढ़ी शेरनी की आवाज़
गूँजी !
”छौने को बाहर निकाला जाए।“
सुनते ही जवान चीते नदी
में कूदे और छौने को गर्दन से पकड़ बाहर निकाल
लाए। ‘आहू’
छौने के पास जाने लगी तो बूढ़ी लोमड़ी डपट पड़ी, ‘खबरदार !
बैठे हुए जानवरों में
खलबली मच गई। आहू सहम कर पीछे हटी। सब फैसला
सुनना चाह रहे थे। गज़ाल
छौने के बाहर निकाले जाने से ख़ुश थी। एक तरफ चुपचाप
खड़ीं मन ही मन प्रार्थना
कर रही थी।
”मेरा छौना बाहर सही सलामत निकल आया। मुझे और कुछ नहीं
चाहिए।“
इतना सोच वह
जाने लगी। उसे जाता देख
आहू मुस्कुराई। उसको अब यक़ीन हो चला था कि फैसला
उसके हक़ में होगा। उसी को
क्यों सभी को लग रहा था कि छौना आहू को मिलेगा। आहू
ही छौने की माँ है। परन्तु
फैसला कुछ और हुआ।
”छौना गज़ाल को दिया जाता है क्योंकि गज़ाल ही छौने की असली
माँ है। पंचों का यही
फैसला है।“ बूढ़ी शेरनी की आवाज़ गूँजी।
एक बार फिर सबकी साँसें थम
गईं। आहू के चेहरे का रंग उड़ गया। आँखें डबडबा
आईं और उसने सर झुका लिया।
गज़ाल छौने के पास आई तो छौना माँ से लिपटने लगा।
उसे याद आया जब वह पानी की
धार में बहाव के बीच डूब रहा था माँ, माँ पुकार कर रो रहा
था तब यही उसके संग दौड़ती
रोती साथ साथ भाग रही थीं। उस ने भी असली माँ को पहचान
लिया था।
आज पूरे चाँद की रात थी।
हवा में ठंडक बसी थी।
चांदनी सारे जंगल पर छिटकी थी !
गज़ाल को ऐसी ही रात का
इन्तज़ार था,
जब छौना समझदार हो जाए तो वह उसको
कहानी सुनाए।
सच्ची कहानी !
सच्ची मगर दर्द भरी कहानी।
जब छौना उसके पास आकर लेटा
तो गज़ाल उसे चाटने लगी,
आज वह छौने के रोज़ पूछे
जाने वाले सवाल कि माँ
मेरे बाबा कहाँ है?
उससे पहले ही जवाब देने लगी।
”वह ऐसी ही चाँदनी रात थी बेटे ! जब शिकारी की बन्दूक से
निकली गोली तेरे बाबा को
लगी थी। दूसरी गोली मेरे
पास से सनसनाती गुज़री थी।“
”फिर माँ ?“ छौना का दिल
धुकधुक करने लगा। बड़ी बड़ी आँखों में भय उभरा।
”दूसरे दिन जब मैं तेरे बाबा को ढूँढने पहुँची तो वहाँ केवल
उनके बदन से टपका खून पड़ा
थां जो ताज़ा और गर्म था।
वह जख्मी थे। उन्हें ढूँढ कर वे शिकारी ले गये।“
”तुमने कैसे जाना ?“
”वहाँ पहियों के निशान थे। जख़्मी होकर वह कुछ दूर दौड़े
होंगे। मैं आगे निकल गई वह
पीछे रह गयें मेरे पेट में
तू था। मुझे तुझे बचाना था। यही एक बात वह मुझसे बार बार कह
रहे थे। मैं मजबूर हो गई
और ...“
”आदमी शिकार क्यों करते हैं ? हम तो उनको नहीं मारते ?“ छौने का सवाल
सुन चाँद
कहकहा मार कर हँस पड़ा।
चाँदनी गहरी हो गई।
”पता नहीं, अब तो उनके
पास पेट की आग बुझाने के लिए तरह तरह के अनाज और फल
हैं मगर पुरानी आदत नहीं
छोड़ते।“
गज़ाल ने कहा।
”उन्हें छोड़ना पड़ेगा माँ ! जीने का हक़ सबको है।“ छौने को क्रोध आ गया था। उसकी
बात सुन कर ... इस बार
चाँद पहले से भी ज्यादा जोर से हँसा। चाँदनी पहले से ज़्यादा
शीतल हो उठी तो गज़ाल ने
झुरझुरी सी ली और बिना जवाब दिये झाड़ियों की ओट में
चली गई। छौना भी माँ के
पीछे गया। जंगल रुपहला हो उठा था।
चाँद का हँसना जारी था।
उस रुपहली चाँदनी में चाँद
के अलावा किसी ने नहीं देखा।
आहू चुपचाप माँद के पास
आकर बैठ गई थी !
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